भिंड | चिल्ला जाड़ा इन दिनों अपने पूरे शबाब पर है, कभी बारिश तो कभी कोहरे के बीच जब थोड़ी बहुत धूप निकलती है। वैसे ही मैं चंबल और आसपास की ज...
भिंड | चिल्ला जाड़ा इन दिनों अपने पूरे शबाब पर है, कभी बारिश तो कभी कोहरे के बीच जब थोड़ी बहुत धूप निकलती है। वैसे ही मैं चंबल और आसपास की जल संरचनाओं की राह पकड़ लेता हूं। लाल मुनिया की खोज में पिछले नवंबर से दलदलीय तालाबों के आसपास भटक रहा हूं। ऐसी ही एक दोपहर को लावन की पुलिया से नहर के किनारे-किनारे पक्षियों की तलाश में पुर के तालाब पर बहुत देर समय व्यतीत किया। फिर अमलेंडा के तालाब पर पहुंच गया। यह तालाब बेशरम की झाड़ियों से घिरा हुआ है। यह तालाब शिकार से महफूज है सो इस तालाब पर जलीय परिंदों की भरमार है। डार्टर, नोव विल्ड डक, ग्रेट इग्रेट, कैटल इग्रेट, इंडियन पांड हैरान, कामन मोरहैन, कूट, किंगफिशर, वूलन नैक लगभग साथ साथ लेसर व्हिस्लिंग डक बहुत बड़ी संख्या में कब्जा जमाए हुए है। कुछ मेहमान ऐसे भी हैं जिनका अभी परिचय नहीं हुआ है।
लेसर व्हिस्लिंग डक को हिंदी में छोटी सिल्ही और सिल्हई भी कहा जाता है। क्योंकि उड़ते समय और बैठे रहने के दौरान इनकी काॅल सीटी (विसिल) जैसी होती है, इसलिए इन्हें व्हिस्लिंग डक कहा जाता है। बतख प्रजाति के यह पक्षी कमोबेश पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते है। यूं तो यह एक स्थानीय पक्षी है, पर मौसम बदलते ही भोजन की तलाश में स्थानीय प्रवास करते रहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में रिसर्च के लिए कैद में रख कर इनकी उम्र 9 साल तक देखी गयी है।
जलरोधक पंख होने के कारण जब ये डर या किसी अन्य कारण पानी से सीधे उड़ान भरते है तो पानी इनके पंखों से तुरंत छिटक जाता है। यह भी देखा जा सकता है कि नर पक्षी ज्यादातर समय शांत रहते हैं और बहुत कम आवाज निकालते हैं। लेकिन मादा काफी आवाज निकालती है।
भास्कर खास
वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट मनोज जैन की डायरी में पढ़ें चंबल की कहानी
नर-मादा एक जैसे दिखते हैं, पहचान करना मुश्किल
इसके सिर का ऊपरी हिस्सा गहरा भूरा, सिर व गर्दन का बाकी हिस्सा हल्का भूरा, गले के पास सफेद रंग, कंधे व पीठ का रंग गहरा भूरा, कंधे के पंख काले बदामी रंग के, पूंछ का रंग गहरा भूरा होता है। इसकी आंखें भूरे रंग की तथा चोंच नीले-भूरे रंग की होती है। इस पक्षी में नर व मादा एक जैसे दिखते हैं। इसका मुख्य भोजन पानी की वनस्पति है। यह धान के खेतों में फसल के दाने खाते है तथा पानी के अंदर छोटे जीवों को भी खा लेते है। लेसर व्हिस्लिंग डक मुख्य रूप से पानी से निकाले गए पौधों के साथ-साथ छोटी मछलियों, मेढ़कों और अकशेरुकी जंतुओं जैसे मोलस्क और कृमियों के अलावा चावल से प्राप्त अनाज को खाते हैं।
पेड़ पर बनाते हैं घोंसला
बतख की इस प्रजाति को ट्री डक के नाम से भी जाना जाता है। इसका मुख्य कारण इन पक्षियों का पेड़ों पर बसेरा करना है। यह पेड़ों पर घौसला बनाते हैं। इनके पंख जलरोधक होते हैं।
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लेसर व्हिस्लिंग डक को हिंदी में छोटी सिल्ही और सिल्हई भी कहा जाता है। क्योंकि उड़ते समय और बैठे रहने के दौरान इनकी काॅल सीटी (विसिल) जैसी होती है, इसलिए इन्हें व्हिस्लिंग डक कहा जाता है। बतख प्रजाति के यह पक्षी कमोबेश पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते है। यूं तो यह एक स्थानीय पक्षी है, पर मौसम बदलते ही भोजन की तलाश में स्थानीय प्रवास करते रहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में रिसर्च के लिए कैद में रख कर इनकी उम्र 9 साल तक देखी गयी है।
जलरोधक पंख होने के कारण जब ये डर या किसी अन्य कारण पानी से सीधे उड़ान भरते है तो पानी इनके पंखों से तुरंत छिटक जाता है। यह भी देखा जा सकता है कि नर पक्षी ज्यादातर समय शांत रहते हैं और बहुत कम आवाज निकालते हैं। लेकिन मादा काफी आवाज निकालती है।
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नर-मादा एक जैसे दिखते हैं, पहचान करना मुश्किल
इसके सिर का ऊपरी हिस्सा गहरा भूरा, सिर व गर्दन का बाकी हिस्सा हल्का भूरा, गले के पास सफेद रंग, कंधे व पीठ का रंग गहरा भूरा, कंधे के पंख काले बदामी रंग के, पूंछ का रंग गहरा भूरा होता है। इसकी आंखें भूरे रंग की तथा चोंच नीले-भूरे रंग की होती है। इस पक्षी में नर व मादा एक जैसे दिखते हैं। इसका मुख्य भोजन पानी की वनस्पति है। यह धान के खेतों में फसल के दाने खाते है तथा पानी के अंदर छोटे जीवों को भी खा लेते है। लेसर व्हिस्लिंग डक मुख्य रूप से पानी से निकाले गए पौधों के साथ-साथ छोटी मछलियों, मेढ़कों और अकशेरुकी जंतुओं जैसे मोलस्क और कृमियों के अलावा चावल से प्राप्त अनाज को खाते हैं।
पेड़ पर बनाते हैं घोंसला
बतख की इस प्रजाति को ट्री डक के नाम से भी जाना जाता है। इसका मुख्य कारण इन पक्षियों का पेड़ों पर बसेरा करना है। यह पेड़ों पर घौसला बनाते हैं। इनके पंख जलरोधक होते हैं।
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