संवाददाता, ई-रेडियो इंडिया मेरठ। देश में मुकदमों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है.... ऐसे में न्याय की उम्मीदों पर बड़ा ब्रेक लग ग...
- संवाददाता, ई-रेडियो इंडिया
इन सभी लम्बित मामलों में दस वर्ष से पुराने मुकदमों की संख्या अधिक है.... और तो और लम्बित कुल मुकदमों के लगभग 71 फीसद मामले अपराध से जुड़े हुये हैं। लॉ कमीशन 1987 की रिपोर्ट बताती है कि देश में 10 लाख की आबादी पर दस जजों का आंकड़ा बैठता है जबकि यह संख्या दस लाख की आबादी पर कम से कम पचास जजों की होनी चाहिये... ऐसे में गरीब आदमियों के उपर सबसे बड़ा बोझ लम्बित मुकदमों में निर्णय आने को लेकर प्रतीक्षारत होने का बना हुआ है... गौरतलब है कि सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण ही पचास फीसद मामले उलझने की संभावना बनी रहती है।
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देश की कुल जीडीपी का 0.4 फीसद बजट ही न्यायपालिका के हिस्से आता है ऐसे में न्याय की त्वरित कार्रवाई की थोथली दलील गले से नीचे उतरने को तैयार नहीं है.... जहां एक ओर इंफ्रास्ट्रक्चर और कोर्ट की संख्या में भारी कमी है और दूसरी तरफ न्यायाधीशों की संख्या में भारी कमी अब भी न्यायपालिका के गले की फांस बना हुआ है।
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मुकदमों से देरी में आने वाले फैसलों के चलते आम जनता में न्यायालय के प्रति भरोसा कम हुआ है, लेकिन इसके पीछे सिर्फ न्यायपालिका ही नहीं बल्कि देश के अन्य स्तम्भ भी जिम्मेदार हैं.... हाल ही में कानपुर वाले विकास दुबे के एनकाउंटर का मामला भी शायद न्यायपालिका की लेटलतीफी का ही परिणाम है....
देरी से मिला न्याय अन्याय के बराबर, ये हैं घातक परिणाम
न्याय व्यवस्था में देरी के चलते कितने नुकसान होते हैं इसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है लेकिन इससे आम आदमियों में न्याय के प्रति भरोसे में गिरावट जरूर दर्ज की गई है.... अपराधियों का मन बढ़ रहा है... ओवरलोड मुकदमों की संख्या के कारण न्यायपालिका की दक्षता में कमी दर्ज की जा रही है... इसके अलावा सबआर्डिनेट कोर्ट के आदेशों में दक्षता की कमी के चलते हाईकोर्ट में एक बार फिर से रिविजन दायर कर लम्बित मुकदमों की संख्या में बढ़ोतरी करना प्रमुख नुकसानों में से हैं।![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoWeTYwOxJ6Imli61iqO7eiR4WytPLPB9T8a1eRfE2tjRUMGx9gEtwcbrNU4WcwYylO7ick7KCTcLegjSjO1jatDC_9nrrcbo3bSuO0J4pFzoESdwH4AmKqo5zeY7mmLKfEMssNsQG3LI/s640/eredionews.Still102.jpg)
Make in India को भी लग रहा झटका
यही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों का भारत की ओर रुख न करने के पीछे कहीं न कहीं न्यायपालिका की लेट-लतीफी भी कारण बनती है। विदेशी निवेशक भारतीय न्याय की समय पर निर्णय देने को लेकर संशय में रहते हैं जिसकी वजह से Make in India जैसे प्रोजेक्ट अधर में ही लटके रह जाते हैं।न्यायपालिका के देरी से निर्णय देने के पीछे के मुख्य कारण जजों की संख्या का पूरा न होना है इसके अलावा पीआईएल व अन्य एमरजेंसी मामलों का निस्तारण प्रमुखता से करने का दबाव होना, कोर्ट संख्या की भारी कमी होना, सरकार की लापरवाही, न्यायाधीशों की गुणवत्ता में मानकों पर ठीक न होना व हाईकोर्ट में निर्णयों के खिलाफ अपील दायर करना भी निर्णयों में देरी का प्रमुख कारण हैं।
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